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हिंदी से अनूठा प्रेम रखने वाले गुरूजी ने लिखी अपनी आत्मकथा कलम चलती रहे…

विज्ञान व गणित के प्रवक्ता होने के बावजूद लिखी दर्जन भर हिंदी व भोजपुरी साहित्य

बलिया : विज्ञान व गणित के प्रवक्ता होने के बावजूद हिंदी साहित्य में रूचि होना, एक बहुत बड़ी उपलब्धि है. उसे कागज पर लिखकर उपन्यास और कथा के रूप समाज की कुरीतियों को बताना एक कला है. लेकिन बहुत कम लोगों के पास ऐसी अद्भुत काला मिलती है.ऐसे ही कला के धनी जिले के साहित्यकार, उपन्यास लेखक व व्यंग्यकार अवकाश प्राप्त प्रवक्ता रमेश चंद श्रीवास्तव है. जिन्होंने अब तक दर्जनों पुस्तकों का संपादन अपनी कलम से किया है.विज्ञान व गणित के बीच हिंदी साहित्य में रूचि रखने वाले रमेश चंद वास्तव में गुरूजी की भूमिका आज भी निभा रहे हैं.उन्होंने अपनी आत्मकथा कलम चलती रहे में अपने जीवन सभी उतार-चढ़ाव को बखूबी कलम से उतरने के कार्य किया है.

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मुरली मनोहर टाउन इंटर कालेज में विज्ञान अध्यापक के रूपये में जीवन शुरू करने वाले गुरूजी यानी रमेश चंद श्रीवास्तव के जन्म रसड़ा तहसील के डेहरी गांव में हुआ था. लेकिन वे बेल्थरारोड तहसील के पलिया गांव में ननिहाल में ही पले बढ़े. उन्होंने पढ़ाई पूरी करने बाद टाउन इंटर कालेज में नौकरी शुरू क़ी. उन्होंने अपने सेवाकाल में बहुत से छात्रों को ऊँचे मुकाम तक पहुंचाया. सेवा क़ी अधिवर्षता पूरी करने के उपरांत साहित्य सेवा में जुट गए. उन्होंने सामाजिक विसंगतियों पा प्रहार करने वाले तमाम रचनाओं को मर्मस्पर्शी रूपये दिया. गुरूजी के उपन्यास तरायल, विधवा के आंसू, बालम परदेशी, कुरूप वधू, बाँटवारा आदि रचनाओं को पढा, उन्होंने अपने तमाम भोजपुरी लेखनी से भोजपुरी साहित्य को आगे बढ़ाने के भी काम किया.

साहित्य लेखनी के अंतिम पड़ाव में पहुंच चुके गुरूजी ने अंत में अपनी आत्मकथा कलम चलती रहे लिखकर समाज को अपनी साहित्य प्रेम को जान जन को पहुंचाने के काम किया. उन्होंने अपने जीवन के एक एक याद को अपनी आत्मकथा को उतरने में दो साल लगा दिया. लेकिन यह आत्मकथा वास्तव में पठनीय है. इस आत्मकथा को पढ़ने के बाद लगा क़ी गुरूजी जी तो वास्तव में साहित्य के ऐसे धनी है.

जिन्होंने विज्ञान और गणित के ज्ञान तो बांटा ही. अब साहित्य के ज्ञान भी पुरे मनोयोग से बाँट रहे है. गुरूजी अपने अध्यापन व लेखनी से पूरी संतुष्ट है. वे कहते हैं क़ी आज भी पढ़ाये गए छात्र आई ए एस व आई पी एस के रूप में मिलते हैं.


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Pradeep Gupta
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