शारीरिक रूप से सक्रिय और चुस्त रहने के लिए फीजियोथेरेपी बहुत आवश्यक है। दुर्घटना में गंभीर चोट खाए लोग हों या लकवा के मरीज, उपचार के बाद शरीर के विभिन्न अंगों को सक्रिय बनाने में फीजियोथेरेपी की अहम भूमिका होती है।
ज्यादातर कंधा जाम 40 से 60 वर्ष के लोगो में होता है। यह दिक्कत पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा होता है। कंधा जाम होने के बहुत से कारण हैं जैसे डायबिटीज (35-40 प्रतिशत मरीजों में), रिफ्लैक्स सिम्पथेटिक डिस्ट्राफी, कार्डियो वस्कुलर की बीमारी, सरवाइकल स्पांडलाइटिस, लकवा, कंधा की चोट आदि।
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कंधा जाम में कंधा के जोड़ पर उपस्थित कैप्सूल में इन्फलेमेशन हो जाता है। धीरे-धीरे यह कैप्सूल सिकुड़ता जाता है जिसे एडिसीव कैप्सूलाइटिस कहते हैं। कंधा जाम को तीन चरणों में बांटा गया है –
पहले चरण में मरीज को कंधे में दर्द होता है जो रात में बढ़ जाता है। दर्द की स्थिति में मरीज कंधे को घुमाने से बचाता है जिससे यह और जाम होता जाता है। यह स्थिति पहले तीन चार महीने तक रहती है।
दूसरे चरण में मरीज को कंधी करने, हाथ को पीछे पाकेट में ले जाने एवं अन्य दिनचर्या के कार्यो में कंधे में असहनीय दर्द का सामना करना पड़ता है। यह स्थिति पांच से चौदह महीने तक रहती है।
तीसरे चरण में कंधा पूरी तरह जाम हो जाता है और दर्द कम रहता है जिससे मरीज के कंधे की मांसपेशी कमजोर होती जाती है और हाथ को ऊपर उठाना मुश्किल हो जाता है।
कंधा जाम के मरीजों को दवा के साथ फीजियोथेरेपी का सहारा लेना चाहिए। महिलाओं को विशेष ध्यान देना चाहिए। फीजियोथेरेपी के द्वारा ही कंधे जाम को पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। इसके अलावा कमर दर्द, लकवा, गठिया, सायटिका, घुटने का दर्द, सरवाइकल स्पांडलाइटिस, मोच से पीड़ित मरीजों में फीजियोथेरेपी रामबाण साबित हुआ है।
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डॉ०प्रवीण कुमार सिंह (फीजियोथेरेपिस्ट) राजेश्वरी फिजियोथेरेपी क्लीनिक एवं स्लीमिंग सेंटर
08 जनवरी 2022
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आज के परिवेश और भाग दौड़ की दिनचर्या की वजह से शारीरिक समस्यायें उत्पन्न होती जा रही है। बहुत ही अच्छी जानकारी इस प्लेटफॉर्म के माध्यम से दी है आपने डॉ प्रवीण सिंह जी। कृपया ऐसी अन्य जानकारी उपलब्ध कराते रहियेगा।